आज 02-सेफ-2024 को अमावस्या है। आज की अमावस्या के कई अलग अलग नाम समाचारों में आ रहे है , जैसे, सोमवती अमावस्या , भौमवती अमावस्या , सतियों की अमावस्या, कुशोत्पाटनी अमावस्या, पीठोरी अमावस्या।
आइये जानते हैं इन सभी अमावस्या का क्या मतलब है।
हिन्दू कलेंडर के अनुसार हर मास में एक बार अमावस्या आती है। साथ ही किसी भी दिन क्या तिथि होगी इसका निर्धारण सूर्योदय के वक्त की तिथि से होता है।
तिथि सूर्य और चंद्रमा की चाल के संयोग से बनती है। इसलिए कई बार एक तिथि 24 घंटे से ज्यादा की भी हो सकती है।
इस बार अमावस्या तिथि 02-Sep-2024 को सुबह 5:24 से शुरू होगी और 03-Sep-2024 को सुबह 07:27 पर खत्म होगी। 02-Sep-2024 को सूर्योदय सुबह 06:11 पर होगा। अतः 02-Sep-2024 को अमावस्या तिथि होगी। 03-Sep-2024 को सूर्योदय सुबह 06:12 पर होगा अतः 03-Sep-2024 को सूर्योदय के वक्त की तिथि भी अमावस्या ही होगी।
इस तरह इस बार अमावस्या तिथि 02 दिन अर्थात सोमवार और मंगलवार दोनों ही दिन होगी। जब अमावस्या तिथि सोमवार को पड़े तो ऐसी अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहते हैं। जब अमावस्या मंगलवार को पड़े तो ऐसी अमावस्या को भौमवती अमावस्या कहते हैं। इस बार क्योंकि अमावस्या सोमवार और मंगलवार दोनों ही दिन है इसलिए इसे सोमवती और भौमवती अमावस्या दोनों ही नाम से जाना जाएगा।
हिन्दू कलेंडर के अनुसार अभी भाद्रपद महिना चल रहा है। भाद्रपद महीने की अमावस्या को सतियों की अमावस्या या कुशोत्पाटनी अमावस्या या पीठोरी अमावस्या भी कहा जाता है।
इस दिन लोग नदी अथवा जंगल से कुशा नामक घास उखाड़कर लाते हैं जो की वर्षभर पुजा आदि में काम आती है। इसलिए इसे कुशोत्पाटनी अमावस्या भी कहते हैं ।
उत्तर भारत के कुछ राज्यों में इसे रानी सती की याद में सतियों की अमावस्या के नाम से भी मनाया जाता है। राजस्थान के झुंझनु में रानी सती का मंदिर है। रानी सती को नारायणी देवी या दादीजी के नाम से भी जाना जाता है। कहते हैं महाभारत में पांडवों में से अर्जुन के बेटे अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा ने ही नारायणी देवी के रूप में जन्म लिया। महाभारत में जब कौरवों ने अभिमन्यु का वध किया तो उसकी पत्नी उत्तरा सती हो जाना चाहती थी। लेकिन उस वक्त उत्तरा के गर्भ में उनका पुत्र था। अतः सभी परिवार जनो ने गर्भस्थ बालक के साथ सती होना धर्म के अनुसार नहीं जाना। तब उत्तरा ने सती होने का विचार त्याग दिया। लेकिन श्री कृष्ण से यह वरदान मांगा की , आने वाले जन्मों में अगर वह फिर से अभिमन्यु की पत्नी बने, और भाग्यवश उस जन्म में भी उसे विध्वा होना पड़े, तो उस जन्म में उसे सती होने का सौभाग्य प्राप्त हो। श्री कृष्ण ने उत्तरा को यह वरदान दिया।
आने वाले जन्मो में उत्तरा ने नारायणी देवी के रूप में वापस जन्म लिया। और इस जन्म में भी उसके पति की मृत्यु हो गयी। पर इस जन्म में श्री कृष्ण के वरदान से वह सती हुई।
वीरांगना नारायणी देवी सती कैसे हुई यह चर्चा कभी और करी जाएगी। भाद्रपद मास की अमावस्या को पीठोरी अमावस्या भी कहते हैं। इस दिन उत्तर भारत में दुर्गा माता की पूजा करी जाती है। और दक्षिण भारत में पोलोरम्मा माता की पूजा करी जाती हैं।
नाम जो भी हो लेकिन अमावस्या को पित्रों का दिन कहा जाता है। माना जाता है की इस दिन पितृ पितृलोक से धरती पर आते हैं। इसलिए इस दिन उनकी शांति के लिए श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। इससे कुंडली के पितृ दोष से भी छुटकारा मिलता है। श्राद्ध और तर्पण से पितृ प्रसन्न होते हैं और परिवार जनो को सुख, शांति और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।