📜 कथा का प्रारंभ
एक बार युधिष्ठिर जी ने, भगवान श्रीकृष्ण से, ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली, अपरा एकादशी का महात्म्य पूछा।
🕉️ श्रीकृष्ण बोले
श्रीकृष्ण बोले, यह एकादशी बड़े बड़े पापों का नाश करने वाली है।
ब्रह्महत्या, गोत्र की हत्या, गर्भस्थ बालक की हत्या, पर-निंदा, झूठी गवाही, माप तोल में धोखा, बिना जाने ही नक्षत्रों की गणना, कूटनीति से वैद्य बनकर वैद्य का काम करना — इन पापों को भी यह एकादशी नष्ट कर देती है।
⚔️ अन्य पापों का क्षय
क्षत्रीय का युद्ध से भाग जाना, शिष्य का विद्या प्राप्त करके गुरु की निंदा करना — ऐसे पाप भी इस एकादशी के व्रत से समाप्त हो जाते हैं।
🌅 पुण्य समान
माघ मास में जब सूर्य मकर राशि पर स्थित हो, उस समय प्रयाग में स्नान करना, काशी में शिवरात्रि का व्रत करना, गया में पिंडदान करके पितरों को तृप्त करना, बृहस्पति के सिंह राशि पर स्थित होकर गोदावरी में स्नान करना, बद्रीकाश्रम की यात्रा के समय भगवान केदार के दर्शन करना, सूर्य ग्रहण के समय कुरुक्षेत्र में दक्षिणा सहित यज्ञ करके हाथी, घोड़ा और सोना दान करना — इन सभी पुण्यों से जो फल की प्राप्ति होती है, वैसा ही पुण्य अपरा एकादशी के व्रत से प्राप्त हो जाता है।
🙏 व्रत और पूजा
अपरा का उपवास करके भगवान वामन की पूजा करने से, मनुष्य सब पापों से मुक्त हो श्री विष्णु लोक में प्रतिष्ठित होता है।
📖 कथा श्रवण का फल
इस महात्म्य को पढ़ने और सुनने से 1000 गोदान का फल मिलता है।
🌼 श्री हरि को समर्पित 🌼
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय