हिन्दू कलेंडर के अनुसार भाद्रपद महीने की कृष्ण पक्ष की द्वादशी को बछ बारस का उत्सव मनाया जाता है । इस दिन गाय और उसके बछड़े की पुजा करी जाती है ।
बछ बारस पुजा की कथा इस प्रकार है ।
एक गांव में एक बार अकाल पड़ा। तो गांव के साहूकार ने तालाब बनाया। लेकिन उस तालाब में पानी नहीं आया। साहूकार ने पंडितों से पूछा कि तालाब में पानी क्यों नहीं आ रहा है? पंडितों ने बताया कि, अगर आप अपने दोनों पोतों में से किसी एक पोते की बलि दे दोगे तो पानी आ जाएगा।
साहुकार ने, इसमें गांव वालों का भला जान, अपने पोते की बलि देने का निश्चय किया।
लेकिन इस बारे में बहू से कैसे बात की जाए यह वह सोचने लगा। बहुत सोचने के बाद उसने एक कठिन निर्णय लिया।
उसने बहू को बोला कि ,तुम्हारा पीहर से बुलावा आया है। छोटे बेटे को लेकर चले जाना और बड़े बेटे को यहीं छोड़ देना । बहु पीहर गई तो पीछे से बड़े बेटे की बलि दे दी गई । तालाब में पानी भी आ गया ।
अब साहूकार ने तालाब पर एक बहुत बड़ा यज्ञ किया ,और ,सभी आसपास के गांवों तक बुलावा भेजा ।
पीहर में बहू का भाई उससे बोला, कि , बहन तेरे मायके में इतना बड़ा उत्सव हो रहा है। पर तुझे नहीं बुलाया। मुझे तो बुलाया है इसलिए मैं जा रहा हूँ । बहू बोली की शायद भूल हो गई होगी। अपने घर जाने में कैसी शर्म? में भी साथ चलती हूँ ।
बहु घर आयी तो सास-ससुर डरने लगे । वे सोचने लगे कि अब बहू को क्या जवाब देंगे ?
फिर भी सास बहू को लेकर बछ बारस व तालाब की पूजा करने के लिए गई । सास मन ही मन बछ बारस माता से प्रार्थना करने लगी की हे माता मेरी लाज रख लेना ।
तालाब पर पहुँचकर सास और बहू ने पूजा करी । सास बोली, बहू जैसा मैं कहती हूँ वैसा करो। तालाब की किनार कसुंबल से खंडित करो । बहू ने सास की बात मानी, और किनार खंडित करके, अपने दोनों बेटों को आवाज दी की आओ और लड्डू उठाओ ।
बछ बारस माता की कृपा हुई और तालाब की मिट्टी में लिपटे दोनों बेटे दौड़ें चले आए । बहू ने अपनी सास से पूछा कि ये सब क्या हो रहा है ? तो सास ने सब सच सच बता दिया। और कहा कि बछ बारस माता ने मेरी लाज रखी है ।
इस कहानी में बछ बारस माता ने सास , ससुर और बहू पर कृपा करी। इस कहानी में बछ बारस माता की कृपा के पीछे दो पहलू हो सकते हैं। सास की बछ बारस माता के प्रति भक्ति और ससुर का लोक हित में अपने पोते की बलि चड़ाने का फैसला। ससुर ने लोक हित को अपने निजी हितों से ऊपर रखा। हिन्दू पौराणिक कहानियों में यह पहलू कई जगह आता है। की जो लोग जन हित को महत्व देते हैं भगवान उनकी मदद जरूर करते हैं । बिना बुलावे के भी बहू का अपने घर यज्ञ में जाना भी प्रशंसनीय है। उसने अपने मन में किसी प्रकार की दुर्भावना को जन्म नहीं लेने दिया। इस कहानी के सभी पात्र भले, ईश्वर भक्त, और साफ दिल प्रतीत होते हैं। जिसके कारण भगवान की उन पर कृपा रही। बोलो बछ बारस माता की जय ।