हरीशयनी एकादशी का महत्व
एक पवित्र व्रत जो मोक्ष प्रदान करता है
परिचय
इस एकादशी को हरिशयनी एकादशी, शयनी एकादशी या देवशयनी एकादशी भी कहते हैं। इसका वर्णन पद्म पुराण में मिलता है।
तिथि और समय
यह एकादशी आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में आती है। आम तौर पर आषाढ़ मास अँग्रेजी कलेंडर के अनुसार जुलाई महीने में पड़ता है।
महत्व
इस एकादशी के महत्व का वर्णन भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर से किया था।
यह एकादशी महान पुण्यमयी और मोक्ष प्रदान करने वाली है।
पूजा विधि
कमल पुष्प से पूजन
इस दिन कमल के फूल से भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए।
जागरण
एकादशी की रात में जागरण करके, भगवान विष्णु की भक्ति पूर्वक पूजा करनी चाहिये।
त्रिलोक पूजन
इस एकादशी का व्रत करने से तीनों लोकों और तीनों सनातन देवताओं का पूजन हो जाता है।
पाप मुक्ति
एकादशी व्रत सभी पापों से मुक्त करने वाला होता है।
भगवान विष्णु का शयन
हरिशयनी एकादशी के दिन, श्री भगवान विष्णु का एक स्वरूप राजा बली के यहाँ पाताल में रहता है। और दूसरा क्षीरसागर में शेषनाग जी की शैया पर शयन करता है।
ऐसा चार मास तक, यानि आगामी कार्तिक की एकादशी जिसे बोधिनी एकादशी भी कहते हैं, तक रहता है। इन चार महीनो में भगवान विष्णु का एक रूप पाताल लोक में क्यों रहता है, यह जानने के लिए भगवान विष्णु के वामन अवतार की कथा पढ़ें।
चतुर्मास के नियम
🛌 शयन नियम
इस चतुर मास में मनुष्य को भूमि पर ही शयन करना चाहिए।
🧘♂️ ब्रह्मचर्य
इन चार मास में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
🍽️ आहार नियम
चार महीनों में विशेष आहार नियम:
इन चीजों का त्याग कर देना चाहिए।
🔥 विशेष कार्य
जो मनुष्य इन चार माह में दीपदान, पलाश के पत्ते पर भोजन, और व्रत करते हैं वे भगवान के प्रिय हैं।
एकादशी व्रत के नियम
शयनी एकादशी और, उसके चार मास बाद आने वाली बोधिनी एकादशी के बीच में, जो भी कृष्ण पक्ष की एकादशी होती है, वो ही गृहस्थ के लिए व्रत करने योग्य है। अन्य मासों की कृष्ण पक्ष की एकादशी ग्रहस्थ के व्रत करने योग्य नहीं होती।
शुक्ल पक्ष की सभी एकादशी के व्रत सभी को करने चाहिए।
जो देवशयनी एकादशी का व्रत करता है, वो चाहे जाति मैं चांडाल भी हो, तब भी संसार में श्री भगवान विष्णु का प्रिय होता है।