Nirjala Ekadashi Vrat Katha

निर्जला एकादशी की कथा

निर्जला एकादशी की कथा

युधिष्ठिर: एक बार युधिष्ठिर जी ने श्रीकृष्ण से निर्जला एकादशी के बारे में बताने के लिए कहा।

श्रीकृष्ण: निर्जला एकादशी के बारे में तो भगवान वेदव्यास ही बताएंगे।

वेदव्यास: दोनों ही पक्षों की एकादशी को भोजन न करें। द्वादशी को स्नान करने के बाद, फूलों से भगवान केशव की पूजा करके, ब्रामणों को भोजन कराएं। फिर भोजन करें।

भीमसेन: हे पितामह, बाकी पांडव और माता कुंती ये एकादशी को कभी भोजन नहीं करते। तथा मुझसे भी हमेशा यही कहते हैं। किंतु मैं इन लोगों से यही कह दिया करता हूँ कि मुझसे भूख नहीं सही जाएगी

वेदव्यास: हे भीमसेन यदि तुम्हें स्वर्ग लोक की प्राप्ति की इच्छा है, और नरक को दूषित समझते हो तो दोनों पक्षों की एकादशी को भोजन न करो।

भीमसेन: हे पितामह, एक बार भोजन करके भी मुझसे व्रत नहीं किया जाता। फिर पूरा दिन उपवास करके तो मैं रहे ही कैसे सकता हूँ। मेरे पेट में वृक नामक अग्नि सदा प्रज्वलित रहती है। अतः जब मैं बहुत अधिक खाता हूँ, तभी वह शांत होती है।

भीमसेन: पितामह, मैं वर्ष भर में केवल एक ही उपवास कर सकता हूँ। जिससे स्वर्ग की प्राप्ति सुलभ हो सके। ऐसा कोई एक व्रत निश्चय करके मुझे बताइए। मैं उसका यथोचित रूप से पालन करूँगा।

व्यास जी: ज्येष्ठ मास में सूर्य वृष राशि पर हों या मिथुन राशि पर, शुक्ल पक्ष में जो एकादशी हो उसका निर्जला व्रत करो। केवल कुल्ला करने के लिए मुख्य में जल डाल सकते हो।

उसको छोड़कर किसी भी प्रकार जल मुख में न डालें अन्यथा व्रत भंग हो जायेगा। एकादशी को सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक मनुष्य जल का त्याग करे। तब यह व्रत पूर्ण माना जाएगा।

निर्जला एकादशी के नियम

प्रातः काल

सुबह पहले दंतधावन करके यह नियम लेना चाहिए, की मैं भगवान केशव की प्रसन्नता के लिए एकादशी को निराहार रहकर आचमन के सिवा दूसरे जल का त्याग करूँगा।

एकादशी के दिन

उस दिन भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए और जलमय धेनु का दान करना चाहिए। अथवा प्रत्यक्ष धेनु या घृत मई धेनुका दान उचित है।

दान

निर्जला एकादशी के दिन अन्न, वस्त्र, गौ, जल, शय्या, सुंदर आसन, कमण्डल, छाता, जूता दान करने चाहिए।

द्वादशी

उसके बाद द्वादशी को सुबह स्नान करके ब्राह्मणों को जल और स्वर्ण दान करें। इस प्रकार सब कार्य पूरा करके ब्राह्मणों को भोजन कराएं।

द्वादशी को भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए गंध धूप पुष्प और सुंदर वस्त्र से विधि पूर्वक पूजन करके जल का कड़ा संकल्प करते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करें:

“संसार सागर से तारने वाले देवाधिदेव ऋषिकेश इस जल के घड़े का दान करने से आप मुझे परम गति की प्राप्ति कराएं।”

दक्षिणा और भांति भांति के मिष्ठानों द्वारा ब्राह्मणों को संतुष्ट करना चाहिए। उनके संतुष्ट होने पर श्रीहरि भगवान विष्णु मोक्ष प्रदान करते हैं।

ब्राह्मणों को शक्कर के साथ जल के घड़े दान करने चाहिए।

यह सुनकर भीम सेन ने भी इस शुभ एकादशी का व्रत प्रारम्भ कर दिया। तब से इस लोक में निर्जला एकादशी, पांडव द्वादशी के नाम से विख्यात हुई।

श्री हरि भगवान विष्णु ने मुझसे कहा था, कि यदि मानव सब को छोड़कर एकमात्र मेरी शरण में आ जाए, और, एकादशी को निराहार रहें तो वह सब पापों से छूट जाता है।

निर्जला एकादशी के लाभ

अक्षय फल

निर्जला एकादशी के दिन स्नान, दान, जप, होम आदि जो कुछ भी किया जाता है, वह सब अक्षय होता है यह भगवान श्रीकृष्ण का कथन है।

वंश कल्याण

जिन लोगों ने विधि विधान के साथ निर्जला एकादशी का व्रत किया है उन्होंने अपने साथ ही बीते हुए 100 पीढ़ियों को और आने वाली 100 पीढ़ियों भगवान वासुदेव परम धाम में पहुंचा दिया है।

पुण्य प्राप्ति

चतुर्दशी युक्त अमावस्या को सूर्य ग्रहण के समय श्राद्ध करके मनुष्य जिस फल को प्राप्त करता है वही निर्जला एकादशी के महतम्या सुनने से भी प्राप्त हो जाता है।

पाप नाश

स्त्री हो या पुरुष, यदि उसने पर्वत के बराबर भी महान पाप किया हो तो वह सब एकादशी के प्रभाव से भस्म हो जाते हैं।

मोक्ष प्राप्ति

एकादशी व्रत करने वाले पुरुष के पास यमदूत नहीं जाते। अंतकाल मैं विष्णुदूत आकर इस वैष्णव पुरुष को भगवान विष्णु के धाम में ले जाते हैं।

दान का फल

जो मनुष्य उस दिन जल के नियम का पालन करता है, वह पुण्य का भागी होता है। हजारों स्वर्ण मुद्रा दान करने के जितना फल प्राप्त होता है, उतना फल इस एकादशी के व्रत का पालन करने से हो जाता है।

निर्जला एकादशी के बारे में प्रश्न

निर्जला एकादशी कब मनाई जाती है?

निर्जला एकादशी ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इस दिन सूर्य वृष राशि या मिथुन राशि पर होते हैं।

निर्जला एकादशी का महत्व क्या है?

निर्जला एकादशी का व्रत करने से वर्ष भर की सभी एकादशियों का फल मिल जाता है। इस दिन जल का भी त्याग किया जाता है, इसलिए इसे निर्जला एकादशी कहते हैं।

निर्जला एकादशी का व्रत कैसे करें?

निर्जला एकादशी के दिन सूर्योदय से लेकर अगले दिन सूर्योदय तक अन्न और जल का त्याग करना चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए और दान-पुण्य करना चाहिए।

पांडव द्वादशी क्या है?

निर्जला एकादशी के अगले दिन आने वाली द्वादशी को पांडव द्वादशी कहते हैं। इस दिन व्रत का पारण किया जाता है और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।

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