पदमा एकादशी व्रत कथा
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पवित्र एकादशी
श्री कृष्ण और युधिष्ठिर का संवाद
पदमा एकादशी की महिमा और राजा मांधाता की कथा
युधिष्ठिर का प्रश्न
एक बार युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण से पूछा, “हे कृष्ण, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष में, कौन सी एकादशी आती है? कृपया उसका वर्णन कीजिये।”
श्री कृष्ण बोले, “मैं तुम्हें एक कथा सुनाता हूँ, जो ब्रह्मा जी ने नारद जी के पूछने पर कही थी।”
ब्रह्मा जी ने बताया था कि इस एकादशी को पद्मा एकादशी कहते हैं।
राजा मांधाता का परिचय
सूर्यवंश में मांधाता नामक एक प्रतापी राजा हुए। वे प्रजा का अपने पुत्रों की भाँति पालन करते थे। उनके राज्य में अकाल, मानसिक चिंताएं, व्याधियां नहीं होती थीं।
उनकी प्रजा निर्भय तथा धन-धान्य से परिपूर्ण थी। सभी लोग अपने-अपने धर्म में लगे रहते थे। उस राज्य की भूमि बहुत उपजाऊ थी। प्रजा सुखी थी।
राजा मांधाता एक आदर्श शासक थे, जिनके राज्य में सभी नागरिक सुखी और समृद्ध थे।
अकाल की समस्या
एक बार किसी कर्म के फल भोग के कारण, राजा के राज्य में तीन वर्षों तक वर्षा नहीं हुई। इससे प्रजा भूख से पीड़ित हो गई।
तब प्रजा ने राजा के पास जाकर कहा:
“वे सर्वत्र विराजमान हैं। वे ही मेघों के रूप में वर्षा करते हैं, जिससे अन्न पैदा होता है और अन्न से प्रजा का जीवन चलता है।”
“इस समय प्रजा अन्न के बिना त्राहि-त्राहि कर रही है। इसलिए ऐसा कोई उपाय करें, जिससे हमारी विपदा शांत हो।”
राजा का प्रतिउत्तर
राजा बोले, “आप लोगों का कथन सत्य है। पुराणों में इस बात का वर्णन है कि, राजाओं के अत्याचार से प्रजा को पीड़ा होती है। परन्तु मुझे अपना किया हुआ, कोई अपराध नहीं दिखाई देता।”
“फिर भी मैं आपकी विपदा शांत करने के लिए पूर्ण प्रयास करूँगा।”
यह कहकर राजा सघन वन की ओर चल दिए। वहाँ अनेक मुनियों और ऋषियों से मिले। वहीं पर उन्हें ऋषि अंगिरा के दर्शन हुए।
उन्होंने मुनि को प्रणाम किया, और अपनी समस्या का समाधान पूछा।
ऋषि अंगिरा का उपदेश
ऋषि बोले, “हे राजन, यह युग सब युगों में उत्तम, सत्य युग है। इस युग में सब लोग परमात्मा का चिंतन करते हैं। इस युग में धर्म अपने चारों चरणों से युक्त होता है।”
“इस युग में सिर्फ ब्राह्मण ही तपस्वी होते हैं, दूसरे लोग नहीं। तुम्हारे राज्य में एक शूद्र तपस्या करता है। इसी कारण मेघ पानी नहीं बरसाते।”
“आप इसके प्रतिकार का प्रयत्न करें, जिससे कि यह अनावृष्टि शांत हो जाए।”
सत्य युग में वर्ण व्यवस्था का पालन अत्यंत महत्वपूर्ण था, और उसका उल्लंघन प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ सकता था।
राजा का धर्मसंकट
राजा ने कहा, “हे मुनिवर, एक तो वह तपस्या में लगा है, दूसरे वह निरपराध है। अतः मैं किसी भी हालत में उसका अनिष्ट नहीं करूँगा। आप कोई और समाधान बताएँ।”
ऋषि बोले, “हे राजन अगर ऐसा है तो आप एकादशी का व्रत करें। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष में पद्मा नाम की एकादशी होती है। उसके व्रत के प्रभाव से उत्तम वर्षा होगी। आप और सभी प्रजाजन इसका व्रत करें।”
पदमा एकादशी व्रत का प्रभाव
ऋषि को प्रणाम कर राजा वापस लौट आए। उन्होंने चारों वर्णों की समस्त प्रजा के साथ, पदमा एकादशी का व्रत किया। कुछ समय बाद मेघ पानी बरसाने लगे। खेती हरी-भरी हो गई। और सभी लोग फिर से सुखी हो गए।
पदमा एकादशी व्रत के प्रभाव से अकाल समाप्त हो गया और प्रकृति का संतुलन पुनः स्थापित हुआ।
श्रीकृष्ण का उपदेश
यह वृतांत कहकर श्रीकृष्ण बोले, “पदमा एकादशी के दिन, जल से भरे हुए घड़े को वस्त्र से ढंककर, दही और चावल के साथ ब्राह्मण को दान देना चाहिए। साथ ही छाता और जूता भी देना चाहिए।”
“दान करते वक्त निम्न मंत्र का स्मरण करें:”
बुद्धश्रवण नाम धारण करने वाले भगवान गोविन्द, आपको नमस्कार है।
मेरी पाप राशि का नाश करके, आप मुझे सब प्रकार के सुख प्रदान करें।
आप पुण्यात्मा जनों को भोग और मोक्ष प्रदान करने वाले, तथा सुखदायक हैं।
“राजन, पद्मा एकादशी की इस कथा को पढ़ने और सुनने से, मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है।”
पदमा एकादशी की महिमा
इस पवित्र व्रत को करने से सभी पापों का नाश होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।