Rama Ekadashi Vrat Katha | Rama Ekadashi ki Kahani

रमा एकादशी व्रत कथा | पौराणिक कहानी

रमा एकादशी व्रत कथा

कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की परम कल्याणमयी एकादशी की पौराणिक कथा

युधिष्ठिर का प्रश्न

एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा । हे भगवन, कार्तिक मास के कृष्णपक्ष में कौन सी एकादशी आती है?

भगवान श्रीकृष्ण का उत्तर

भगवान श्रीकृष्ण बोले, कार्तिक मास के कृष्णपक्ष में परम कल्याणमयी रमा एकादशी आती है।

इसकी कथा इस प्रकार है।

राजा मुचुकुंद और चन्द्रभागा

किसी समय मुचुकुंद नाम से विख्यात एक राजा था। वह भगवान श्री विष्णु का परम भक्त और सत्यप्रतिज्ञ था। राजा के यहाँ पर नदियों में श्रेष्ठ, चन्द्रभागा कन्या के रूप में उत्पन्न हुई।

राजा मुचुकुंद

विष्णु भक्त और सत्यप्रतिज्ञ राजा

चन्द्रभागा

राजा मुचुकुंद की कन्या

राजा ने चंद्रसेन नगर के, कुमार शोभन के साथ चंद्रभागा का विवाह कर दिया।

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एकादशी का महत्व

एकादशी व्रत हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और इसे करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

शोभन का एकादशी व्रत

एक बार शोभन ससुर जी के घर आए। राजा के यहाँ दशमी के दिन, पूरे नगर में ढिंढोरा पिटवाया जाता था, कि एकादशी के दिन कोई भी भोजन ना करे।

यह बात सुनकर शोभन ने, अपनी पत्नी चन्द्रभागा से पूछा। मुझे बताओ कि, इस समय मुझे क्या करना चाहिए?

चन्द्रभागा ने कहा। प्रभु मेरे पिता के घर पर, एकादशी के दिन, कोई भी भोजन नहीं कर सकता। मनुष्यों की क्या बात है, यहाँ तो जानवर भी भोजन नहीं करते।

अगर इस दिन आप भोजन करेंगे, तो आपकी बड़ी निंदा होगी। यह विचार करके, अपने मन को दृढ़ कीजिए।

शोभन ने कहा, तुम्हारा कहना सही है। मैं भी आज उपवास करूँगा। आगे भगवान का जैसा विधान होगा, वैसा ही होगा।

इस प्रकार निश्चय करके, शोभन ने भी व्रत के नियम का पालन किया। परन्तु भूख से उनके शरीर में पीड़ा होने लगी। भूख की व्याकुलता में ही सूर्यास्त भी हो गया।

फिर रात्रि आई। रात्रि में सभी भगवान श्री हरि की पूजा और जागरण करने लगे। परन्तु शोभन के लिए यह रात्रि अत्यंत दुखदायी हो गई।

सूर्योदय होते होते भूख से उनके प्राण निकल गए।

राजा मुचुकुंद ने उचित रीति रिवाज से, उनका दाह संस्कार कराया।

चन्द्रभागा अपने पिता के घर पर ही रहने लगी।

व्रत का फल

अब क्योंकि शोभन ने रमा एकादशी का व्रत किया था, इसीलिए इस व्रत के प्रभाव से, शोभन मंदराचल के शिखर पर बसे हुए, परम रमणीय देवपुर को प्राप्त हुए।

वहाँ शोभन द्वितीय कुबेर की भाँति शोभा पाने लगे।

राजा मुचुकुंद के नगर में सोमशर्मा नाम से विख्यात एक ब्राह्मण रहते थे। एक बार वे तीर्थ यात्रा करते हुए, मंदराचल पर्वत पर गए। वहाँ उन्हें शोभन दिखाई दिए।

राजा के दामाद को पहचानकर, वे उनके नजदीक गए। शोभन भी उन्हें पहचान कर, आसन से उठकर खड़े हो गए, और उन्हें प्रणाम किया।

शोभन और सोमशर्मा का संवाद

फिर शोभन ने अपने ससुर और अपनी पत्नी का कुशल-समाचार पूछा।

सोम शर्मा ने बताया कि वहाँ सब कुशल है।

परन्तु यहाँ तो बहुत आश्चर्य की बात है। ऐसा सुंदर और विचित्र नगर तो, कभी किसी ने नहीं देखा होगा। कृपया बताएं कि, आपको इस नगर की प्राप्ति कैसे हुई?

शोभन का उत्तर

शोभन ने जवाब दिया की, कार्तिक कृष्णपक्ष की रमा नाम की एकादशी का व्रत करने से ही, मुझे इस नगर की प्राप्ति हुई है।

परंतु हे ब्राह्मण, मैंने श्रद्धाहीन होकर इस उत्तम व्रत का अनुष्ठान किया था। इसलिए मैं ऐसा मानता हूँ की, यह नगर सदा स्थिर रहने वाला नहीं है।

आप राजा मुचुकुंद की कन्या चन्द्रभागा से यह सारा वृतांत कहिएगा।

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रमा एकादशी का महत्व

रमा एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को दिव्य लोकों की प्राप्ति होती है और उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।

चन्द्रभागा का निर्णय

ब्राह्मण सोम शर्मा, राजा मुचुकुंद के नगर में गए। और वहाँ चन्द्रभागा को सारा वृतांत कह सुनाया।

सोम शर्मा बोले। मैंने तुम्हारे पति को प्रत्यक्ष देखा है। और उस विचित्र नगर को भी देखा है जहाँ वे रहते हैं। वे उस नगर को अस्थिर बतलाते हैं। तुम उसको स्थिर बनाओ।

चन्द्रभागा ने कहा कि, मेरे मन में पति के दर्शन की लालसा है। आप मुझे वहाँ ले चलिए। मैं अपने व्रत के पुण्य से, उस नगर को स्थिर बनाऊँगी।

फिर ब्राह्मण सोमशर्मा चन्द्रभागा को लेकर, मंदराचल पर्वत के निकट वामदेव मुनि के आश्रम पर गए।

वहाँ ऋषि के मंत्र की शक्ति, तथा एकादशी व्रत के प्रभाव से, चन्द्रभागा का शरीर दिव्य हो गया। तथा उसने दिव्य गति प्राप्त कर ली।

कथा का दूसरा भाग

चन्द्रभागा और शोभन का मिलन

इसके बाद वह पति के समीप गई। उन्हें अपने नजदीक देखकर उसे बहुत खुशी हुई। अपनी पत्नी को आया देख, शोभन को भी बड़ी प्रसन्नता हुई।

फिर चन्द्रभागा ने शोभन से कहा। मैं अपने पिता के घर रहते हुए, आठ वर्ष की अवस्था से, एकादशी का व्रत कर रही हूँ। और उस व्रत के प्रभाव से, मेरे भीतर पुण्य संचित हुआ है।

उस पुण्य के प्रभाव से, यह नगर कल्प के अंत तक स्थिर रहेगा। तथा सब प्रकार के मनोवांछित वैभव से समृद्धशाली होगा।

इस प्रकार रमा एकादशी के प्रभाव से, चन्द्रभागा दिव्यरूप धारण करके, अपने पति के साथ, मंदराचल के शिखर पर विहार करने लगी।

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एकादशी व्रत का फल

श्रद्धा और विश्वास के साथ किया गया एकादशी व्रत मनुष्य को दिव्य लोकों की प्राप्ति कराता है और उसके सभी पापों का नाश करता है।

भगवान श्रीकृष्ण का उपदेश

फिर भगवान श्रीकृष्ण बोले की, हे राजन, मैंने तुम्हारे समक्ष रमा एकादशी का वर्णन किया है।

यह चिंतामणी तथा कामधेनु के समान सब मनवांछित फलों को पूर्ण करने वाला है।

जो मनुष्य एकादशी व्रतों का महात्म्य सुनता है, वह सब पापों से मुक्त हो, श्री विष्णु लोक में प्रतिष्ठित होता है।

रमा एकादशी व्रत के लाभ

पापों का नाश

इस व्रत को करने से सभी पापों का नाश होता है

दिव्य लोक प्राप्ति

व्रत करने वाले को दिव्य लोकों की प्राप्ति होती है

मनोकामना पूर्ति

सभी मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है

रमा एकादशी व्रत कथा

इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि श्रद्धा और विश्वास के साथ किया गया एकादशी व्रत मनुष्य को दिव्य लोकों की प्राप्ति कराता है और उसके सभी पापों का नाश करता है।

|| हरि ॐ तत्सत ||

रमा एकादशी व्रत कथा

यह कथा हिन्दू धर्म के पौराणिक ग्रंथों से ली गई है।

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