Varuthini Ekadashi Vrat Katha | Varuthini Ekadashi ki Kahani

वरुथिनी एकादशी व्रत कथा | Varuthini Ekadashi Story

वरुथिनी एकादशी व्रत कथा

एक बार युधिष्ठिर जी ने, भगवान श्रीकृष्ण से, वैशाख मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली, वरुथिनी एकादशी के बारे में वर्णन करने के लिए प्रार्थना की ।

भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर जी को बताया की, इस व्रत के प्रभाव से सौभाग्य की वृद्धि होती है और पाप की हानि होती है। यह इस लोक और परलोक में भी सौभाग्य प्रदान करती है।

इस व्रत के प्रभाव से मांधाता और धुन्धुमार आदि अनेक राजा स्वर्ग लोक को प्राप्त हुए हैं ।

व्रत का महत्व और फल

जो 10,000 वर्षों तक तपस्या करता है उसके सामने ही फल वरूथिनी के व्रत से भी मनुष्य प्राप्त कर लेता है ।

दानों की श्रेष्ठता

घोड़े के दान से हाथी का दान श्रेष्ठ है । भूमि दान उससे बड़ा है । भूमि दान से अधिक महत्त्व तिल दान का है । तिल दान से बढ़कर स्वर्ण दान और उससे बढ़कर अन्न दान है, क्योंकि देवता, पितर, मनुष्यों को अन्न से ही तृप्ति होती है ।

कन्यादान का महत्व

कन्यादान को भी अन्नदान के ही सामान्य बताया गया है । कन्यादान के तुल्य ही, धेनु का दान है। यह साक्षात् भगवान का कथन है ।

विद्यादान की महिमा

ऊपर कहे गए सब दानों से बड़ा, विद्यादान है । वरूथिनी एकादशी का व्रत करके मनुष्य विद्या दान का भी फल प्राप्त कर लेता है ।

कन्यादान और उसका महत्व

जो लोग पाप से मोहित होकर, कन्या के धन से जीविका चलाते हैं, वे पुण्य का क्षय होने पर नरक में जाते हैं ।

अतः प्रयत्न करके कन्या के धन से बचना चाहिए। उसे अपने काम में नहीं लेना चाहिए ।

जो अपनी शक्ति के अनुसार, आभूषणों से विभूषित करके, पवित्र भाव से कन्या का दान करता है, उसके पुण्य की संख्या चित्र गुप्त भी नहीं बता सकते । वरुथिनी एकादशी करके भी मनुष्य, इसी के समान फल प्राप्त करता है ।

व्रत विधि

व्रत करने वाले मनुष्य को निम्न विधि अपनानी चाहिए:

दशमी तिथि

  • काँस, उड़द, मसूर, चना, कोदो, शाक, मधु, दूसरे का अन्न का परित्याग
  • दो बार भोजन का परित्याग करना चाहिए
  • इंद्रिय संयम रखना चाहिए

एकादशी तिथि

  • जुआ खेलना, नींद लेना, पान खाना, दातुन करना त्यागें
  • दूसरों की निंदा करना, चुगली खाना त्यागें
  • चोरी, हिंसा, क्रोध, असत्य भाषण का त्याग
  • इंद्रिय संयम रखना चाहिए

द्वादशी तिथि

  • काँस, उड़द, शराब, मधु, तेल का परित्याग
  • असंत लोगों से वार्तालाप, व्यायाम, परदेश गमन त्यागें
  • दो बार भोजन, बैल की पीठ पर सवारी त्यागें
  • मसूर का परित्याग करें
  • इंद्रिय संयम रखना चाहिए

रात को जागरण करके, जो भगवान मधुसूदन का पूजन करते हैं, वे सब पापों से मुक्त हो परमगति को प्राप्त होते हैं ।

उपसंहार

यमराज से डरने वाला मनुष्य अवश्य वरुथिनी एकादशी का व्रत करे ।

हे राजन् इसके पढ़ने और सुनने से 1000 गोदान का फल मिलता है, और मनुष्य सब पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक में प्रतिष्ठित होता है ।

शुभ वरुथिनी एकादशी

वरुथिनी एकादशी व्रत से मिलने वाले पुण्य फलों को प्राप्त करने के लिए इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करें और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करें।

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