संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा

एक बार एक देवरानी -जेठानी  थी. जेठानी के बहुत धन था।   देवरानी गरीब  थी।  देवरानी  भगवन  गणेश  जी  की  बहुत  आराधना  करती  थी।  वो  अपनी  जेठानी  के  घर  रोज  आटा  पीसने  जाती  थी।  जिस  कपडे  से  आटा छनती थी  वह  कपडा  अपने  घर  ले जाकर  पानी  में  धो  लेती  और  अपने  पति  को  घोलकर  पिला  देती। 

एक  दिन  जेठानी   के  बच्चों  ने  देख  लिया।  वह  अपनी  मां  से  बोले  की  मां चाची   तो  अपने  घर  से  आटे  का  कपडा  ले  जाकर  चाचा जी  को  घोलकर  पीला  देती  है।  इस  पर  जेठानी  ने  देवरानी  को  कहा  घर  जाओ  तो  आटा  छानने  का  कपडा  यहीं  रख  कर  जाया  करो।  देवरानी  ने  वैसा  ही  किया। 

घर  गई  तो  उसका  पति  बोला  की मुझे  आटा घोलकर  पीला  दो।  देवरानी  बोली  की  आज  जेठानी  ने  कपडा  वही  रख  लिया  है  इसलिए  मेरे  पास  आपको  खिलाने  के  लिए  कुछ  भी  नहीं  है। उस  दिन  उसके  पति  ने  भूखे  मरते  गुस्से  में  होकर  उसको  लकड़ी  से  मारा  था।  श्री  गणेश  जी  का  स्मरण  करती  हुई  वह  सो  गई। 

तभी  थोड़ी  देर  बाद  गणेश  जी  ने  आ  कर  कहा  की  आज  तो  तिल  चौथ   है  और  तू  भूखी  ही  क्यों  सो  रही  है।  तब  देवरानी  ने  सारा  वृतांत  कह  सुनाया . तब  भगवन  बोले  की  आज  मैंने  तिल  चौथ  होने  के  कारण  चूरमा  व  तिलकुटा  बहुत  खाया  है।  इसलिए  निपटने  की  मन  में  है।  कहाँ  जाऊं।  वह  गुस्से  में  बोली  महाराज  बहुत  जगह  पड़ी  है  जहाँ  चाहो  चले  जाओ।  गणेश  जी  ने  सारा  घर  भर  दिया।  निपटने  के  बाद  बोले  पूंछू   कहाँ।  वह  फिर  गुस्से  से  बोली  मेरा  ललाट  पड़ा  है  पूँछ  लो।  गणेश  जी  पूँछ  कर  चले  गए।

  थोड़ी  देर  बाद  उसने  उठ  कर  देखा  तो  सारा  घर  हीरे  मोती  से  जगमगा  रहा  था।  सारा  सर  भी  सोने  की  आभा  से  चमक  रहा  था।  धन  को  बटोरने  में  देर  हो  गई  इसलिए  जेठानी  के  यहाँ  नहीं  जा  सकी। 

जेठानी  ने  अपने  बच्चों  को  चाची  के  घर  देखने  के  लिए  भेजा  की  चाची  क्यों  नहीं  आयी  है।   बच्चों  ने  आकर  देखा  तो  वहां  हीरे  मोती  का  ढेर  लगा  था  तब  बच्चों  ने  आकर  अपनी  माता  से  कहा  की  मां  चाची  के  तो  बहुत  धन  हो  गया  है।

 जेठानी  भागी  भागी  अपनी  देवरानी  के  पास  आयी  और  पूछा  की  इतना  धन  कैसे  हुआ।  भोली भाली  देवरानी  ने सारी  घटना सच -सच  बता   दी। इतना  सुनकर  जेठानी  अपने  घर  आयी  और  अपने  पति  से  बोली  “मुझे  लकड़ी  से  मारो।  देवरानी  को  देवर  जी  ने  बहुत  मारा इसलिए  उसके  बहुत  धन  हो  गया  है।“  उसके  पति  ने बोला   की – “तू  धन  की  भूखी  क्यों  मार  खाती  हैं।“  लेकिन  वह  नहीं  मानी  और  बहुत  मार  खाकर  अपने  मकान   को  खाली  कर के  श्री  गणेश  जी  का  स्मरण  करके  सो  गई।

 गणेश  जी  महाराज  आये  और  कहने  लगे  “फालतू  में  मार  खाने  वाली , उठ  और  मुझे  बता  की  मैं  कहाँ  निपटने  जाऊं।  तब  वह  बोली  मेरी  देवरानी  के  तो  छोटा  सा  मकान  था  मेरे  तो  बहुत  बड़ा  मकान  है।  जहाँ  इच्छा  हो  वहीँ  चले  जाओ।  और  गणेश  जी  ने  निपटना  शुरू  कर  दिया।  अब  बोले  पूंछूं   कहाँ  तो  जेठानी  बोली  मेरा  ललाट  पड़ा  है।  गणेशजी  पूंछकर  चले  गए।  थोड़ी  देर  में  उसने  उठ   कर  देखा  तो  सारा  घर  सड़  रहा  था  और  बदबू  आ  रही  थी। 

तब  वह  बोली  की  श्री  गणेश  जी  महाराज  आपने  मेरे  साथ  छल  कपट  किया  है।  देवरानी  को  तो  धन  वैभव  दिया।  मुझे  कूड़ा  दिया।  गणेश  जी  आये  और  बोले  की  तूने  धन  की  भूखी  मार  खाई।  जेठानी  बोली  और  क्षमा  याचना  करने  लगी।  हे  महाराज  मुझे  तो  धन  नहीं  चाहिए  आप  अपनी  माया  समेटो।  गणेश  जी  बोले  तेरे  धन  का  देवरानी  को  आधा  दे  दे  तब  अपनी  माया  समेटूंगा।  जेठानी  ने  आधा-धन देवरानी  को  दे  दिया  लेकिन  एक  सुई  नहीं  दी।  तब  भगवन  ने  एक  सुई  भी  देवरानी  को  दिलवाई।  तब  भगवन  ने अपनी  माया  समेटी ।

 है  रिद्धि  सिद्धि  के दाता  हे  श्री  गणेश  जी  महाराज  जैसा  आपने  जेठानी  के  साथ  किया  वैसा  किसी  के  साथ  नहीं  करना।  जैसा  देवरानी  के  भंडार  भरा  ऐसा  सभी  के  भरना।  कहानी  सुनने  और  सुनाने  वाले  की मनोकामना  पूर्ण  करना।

इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है की हमें किसी से ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए जैसे की इस कहानी में जेठानी अपनी देवरानी से करती थी। साथ ही अगर किसी को अपने अच्छे कर्मों के कारण ईश्वर की कृपा प्राप्त हो तो हमें उसकी देखा देखि नहीं करनी चाहिए। नक़ल के लिए भी अक्ल की जरूरत होती है। देवरानी को श्री गणेशजी की कृपा अपने पति से मार खाने के कारण नहीं बल्कि उसके सद व्यव्हार के कारण प्राप्त हुई थी। अगर जेठानी बात को ठीक से समझती और अपने आचरण में परिवर्तन करती तो भविष्य में उसे भी ईश्वर की कृपा प्राप्त हो सकती थी। उसे श्री गणेशजी का कोप भाजन नहीं बनना पड़ता। साथ ही अगर कोई जरूरतमंद हो तो हमें उसकी मदद करनी चाहिए।

 बोलो  गणेश  जी  व्  चौथ  माता  की  जय।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *